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Ghazals, Nazms....

Sunday, July 24, 2005

हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है

Lyricist: Akbar Allahabadi
Singer: Ghulam Ali

हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है।

उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे हो बेगाना
मकसूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है।

उधर ज़ुल्फ़ों में कंघी हो रही है, ख़म निकलता है
इधर रुक रुक के खिंच खिंच के हमारा दम निकलता है।
इलाही ख़ैर हो उलझन पे उलझन बढ़ती जाती है
न उनका ख़म निकलता है न हमारा दम निकलता है।

सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हमको कहें काफ़िर अल्लाह की मरज़ी है।

गर सिया-बख़्त ही होना था नसीबों में मेरे
ज़ुल्फ़ होता तेरे रुख़सार कि या दिल होता।

जाम जब पीता हूँ मुँह से कहता हूँ बिसमिल्लाह
कौन कहता है कि रिन्दों को ख़ुदा याद नहीं।
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Am not sure what is the meaning of ख़म , but most likely it means curls (in the hair) here. Can somebody confirm/correct?

Similarly not sure of सिया-बख़्त, but most likely it refers to something like "charge of adultery" or "getting bad fame".

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मय = Wine
मकसूद = Intended, Proposed
बख़्त = Fate
रिन्द = Drunkard

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