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Ghazals, Nazms....

Saturday, July 02, 2005

तुझे क्या ख़बर मेरे हमसफ़र, मेरा मरहला कोई और है

Lyricist: Sant Darshan Singh
Singer: Ghulam Ali

तुझे क्या ख़बर मेरे हमसफ़र, मेरा मरहला कोई और है।
मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है मेरा रास्ता कोई और है।

मेरी चाहतों को न पूछिए, जो मिला तलब के सिवा मिला
मेरी दास्ताँ ही अजीब है, मेरा मसला कोई और है।

वो रहीम है, वो करीम है, वो नहीं कि ज़ुल्म सदा करे
है यक़ीं ज़माने को देखकर कि यहाँ ख़ुदा कोई और है।

मैं चला कहाँ से ख़बर नहीं, इस सफ़र में है मेरी ज़िन्दगी
मेरी इब्तदा कहीं और है मेरी इंतहा कोई और है।

मेरा नाम 'दर्शन' है खतन, मेरे दिल में है कोई लौ पिघन
मैं हूँ गुम किसी की तलाश में मुझे ढूँढता और है।


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Could not hear clearly the words in bold (of the last stanza). And hence, in all probability, they are written wrong. Corrections?

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मरहला = Journey
गुरेज़ = Escape, Evasion
मसला = Problem
इब्तदा = Beginning
इंतहा = Ending

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