Their Words, Their Voice

Ghazals, Nazms....

Monday, June 27, 2005

जब कभी साकी-ए-मदहोश की याद आती है

Lyricist: Sant Darshan Singh
Singer: Ghulam Ali

जब कभी साकी-ए-मदहोश की याद आती है
नशा बन कर मेरी रग-रग में समा जाती है।

डर ये है टूट ना जाए कहीं मेरी तौबा
चार जानिब से घटा घिर के चली आती है।

जब कभी ज़ीस्त पे और आप पे जाती है नज़र
याद गुज़रे हुए ख़ैय्याम की आ जाती है।

मुसकुराती है कली, फूल हँसे पड़ते हैं
मेरे महबूब का पैग़ाम सबा लाती है।

दूर के ढोल तो होते हैं सुहाने 'दर्शन'
दूर से कितनी हसीन बर्क़ नज़र आती है।

--

जानिब = In the direction
ज़ीस्त = Life
सबा = Breeze
बर्क़ = Lightning

Categories:

0 Comments:

Post a Comment

<< Home