Their Words, Their Voice

Ghazals, Nazms....

Saturday, June 25, 2005

राज़ ये मुझपे आशकारा है

Lyricist: Sant Darshan Singh
Singer: Ghulam Ali

राज़ ये मुझपे आशकारा है
इश्क शबनम नहीं शरारा है।

इक निग़ाह-ए-करम फिर उसके बाद
उम्र भर का सितम गवारा है।

रक़्स में हैं जो सागर-ओ-मीना
किसकी नज़रों का ये इशारा है।

लौट आए हैं यार के दर से
वक़्त ने जब हमें पुकारा है।

अपने दर्शन पे इक निग़ाह-ए-करम
वो ग़म-ए-ज़िन्दग़ी का मारा है।

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आशकारा = obvious
शरारा = spark
रक़्स = Dance

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