सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं
Lyricist: Athar Nafeez
Singer: Ghulam Ali
सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं।
अपने गुमगश्ता किनारों के लिए बहता हूँ मैं।
जल गया सारा बदन इन मौसमों की आग में
एक मौसम रूह का है जिसपे अब ज़िंदा हूँ मैं।
मेरे होंठों का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे
तूने मुझको बाग़ जाना देख ले सहरा हूँ मैं।
देखिए मेरी पज़ीराई को अब आता है कौन
लम्हा भर को वक़्त की दहलीज़ पे आया हूँ मैं।
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गुमगश्ता = Errant, Lost, Missing, Wandering
तबस्सुम = Smile, Smiling
सहरा = Desert, Wilderness
पज़ीराई = Reception
Categories: AtharNafeez
1 Comments:
This "ka" is because of "dariya" and not because of "saansen".
If it were "nadee", it would have been "saanson kee nadee".
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